देहदान और अंगदान करना सबसे बड़ा दान माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दोनों में अंतर है? चलिए जानते हैं इसके बारे में –

देहदान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। जिंदा रहकर हई कोई तरह-तरह के दान करता है, लेकिन जो व्यक्ति अंगदान या देहदान करके जाता है वह मनरे के बाद भी कई लोगों को नई जिंदगी देकर जाता है। इसलिए देहदान या अंगदान को सबसे महान दान माना गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देहदान और अंगदान में अंतर है। जी हां, दोनों सुनने में एक ही जैसा लगता है, लेकिन दोनों में काफी ज्यादा अंतर है। किसी भी व्यक्ति के मरने के बाद उसका देह यानि शरीर दान किया जाता है। मेडिकल रिसर्च के काम आता है। रिसर्च में शोधकर्ता इंसानी शरीर को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। कुछ व्यक्ति मरने से पहले अपना शरीर दान करने का लिखकर के जाते हैं। वहीं कुछ व्यक्तियों के घरवाले उनका शरीर दान कर देते हैं।

देहदान करने का निर्णय काफी ज्यादा कठिन होता है। खासतौर पर मरने के बाद व्यकित्यों के परिवार वालों के लिए यह निर्णय लेना काफी ज्यादा कठिन है। हमारे देश में कई लोगों ने देहदान का निर्णय मरने से पहले लिया है। वहीं कुछ लोगों के परिजनों ने मरने के बाद उनका शरीर दान किया है।

देहदान और अंगदान में क्या है अंतर? : देहदान और अंगदान में काफी ज्यादा फर्क होता है। देहदान में व्यक्ति का पूरा शरीर दान किया जाता है। यानि देहदान सिर्फ मरने के बाद ही किया जाता है। वहीं अंगदान में आप शरीर के उस हिस्से को डोनेट कर सकते हैं, जिससे आपका यानि दानदाता का जीवन प्रभावित न हो। साथ ही आपके शरीर का वह हिस्सा किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित न हो। अंगदान में शरीर के कुछ अंगों को आप मरने से पहले भी दान कर सकते हैं। जैसे कई जीवित व्यक्ति अपनी दो किडनी में से एक किडनी दान करते हैं, ताकि दूसरे की जान बचाई जा सके। ब्रेन डेड होने पर शरीर के सभी अंगों को दान में दिया जा सकता है। मृत शरीर के 3 घंटे तक आंखों की कॉर्निया जीवित रहती है, जिसे मृत व्यक्ति मरने से पहले या उसका परिजन दान कर सकता है। हमारे देश में किडनी, लिवर और कॉर्निया की सबसे ज्यादा डिमांड है। किसी भी मृत व्यक्ति के शरीर में सबसे कम समय तक कॉर्निया और सबसे ज्यादा समय तक किडनी जीवित रहती है। इन अंगों को मृत व्यक्ति के शरीर से निकालकर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। पूरे शरीर के दान को देहदान कहते हैं।

क्यों देहदान है जरूरी?

मेडिकल छात्रों को एनाटॉमी पढ़ाने के लिए देह यानि शरीर का इस्तेमाल किया जाता है। इससे छात्र शरीर के स्ट्रक्चर और वह किस तरह से काम करता है, इसके बारे में पढ़ते हैं। सर्जन्स, डेंटिस्ट्स, फिजिशियंस और अन्य हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स के कोर्स में यह सबसे अहम हिस्सा माना जाता है। मेडिकल कॉलेज को वॉलेंटरी डोनेशंस से मृत व्यकित् का शरीर मिलता है। इसके अलावा पुलिस को मिले अज्ञात शव, जिसे कोई नहीं लेता है उन शवों को मेडिकल इंस्टीट्यूट में भेजा जाता है।

शरीर डोनेशन की क्या होती है शर्तें?

हर व्यक्ति अपना देहदान कर सकता है। मेडिकल इंस्टीट्यूशंस द्वारा आसानी से देहदान को स्वीकार कर लिया जाता है। हालांकि, इसके लिए कुछ कंडीशंस भी रखे गए हैं। कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं, जिसमें देहदान को स्वीकार नहीं किया जाता है। जैसे अगर किसी व्यक्ति का मौत के बाद पोस्टमार्टम किया जाता है, तो उस मृत व्यक्ति के देहदान को स्वीकार नहीं किया जाता है।

कैसे करें देहदान?

आप अपने जीवन में कभी भी देहदान का फैसला ले सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले आपको किसी मेडिकल कॉलेज या फिर बॉडी डोनेशन एनजीओ से संपर्क करना होगा। यहां संपर्क करके आप देहदान के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि इसका फैसला लेने से पहले एक बार अपने परिवार वालों से अपने निर्णय के बारे में सलाह जरूर लें।

अंगदान कैसे करें?

जिन अस्पतालों में अंगदान की सुविधा होती है। वहां, जाकर आप अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि आपकी आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए, तभी आप अंगदान के लिए फॉर्म भर सकते हैं। आपकी मृत्यु के बाद परिजन की सूचना पर विशेषज्ञों की टीम द्वारा आपके शरीर के अंग को प्राप्त कर लिया जाता है। देहदान और अंगदान का फैसला काफी कठिन और साहस से भरा होता है। इसलिए इस फैसले को लेने से पहले एक बार अपने परिवारवालों से सलाह जरूर लें। ताकि आगे किसी तरह की समस्या उत्पन्न न हो।

डॉ. एके द्विवेदी
वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक एवं सदस्य केंद्रीय

होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय की
वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड

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