दर्द चाहे शरीर के किसी भी हिस्से में हो, कई बार पीडि़त व्यक्ति के जी का जंजाल बन जाता है और उसकी दिनचर्या व कार्यक्षमता को प्रभावित करता है। पीठ दर्द भी उनमें से एक है। आज पीठ दर्द एक महामारी का रूप लेता जा रहा है। यह समस्या पहले जहां हड्डियां कमजोर होने की वजह से 40 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों को होती थी, वहीं आज बदलती जीवनशैली व असंतुलित खान-पान से युवाओं में भी देखने को मिल रही है। इसकी वजह से उठने-बैठने, चलने और लेटने आदि गतिविधियों में समस्या आने लगती है।
क्या होता है पीठ दर्द
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय सीसीआरएच के वैज्ञानिक सलाहकार मंडल के सदस्य एवं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य तथा देश के श्रेष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार पीठ दर्द असल में रीढ़ की हड्डी, उसके टिशूज, नसें, मांसपेशियों, लिंगामेंट्स और डिस्क पर दबाव पड़ने या किसी तरह की तकलीफ होने पर होता है। इसकी वजह से पीठ के अलग-अलग हिस्सों में या एक ही जगह पर दर्द हो सकता है। यह दर्द गर्दन से लेकर कमर के निचले हिस्से तक या फिर स्लिप डिस्क या साइटिका होने की स्थिति में पैरों तक जा सकता है। एक रिसर्च के अनुसार, दुनियाभर में पीठ दर्द डॉक्टर के पास जाने का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
उम्र के हिसाब से पीठ दर्द
आमतौर पर किशोरावस्था में मांसपेशियों में तनाव या स्पोंडिलाइटिस होने के कारण दर्द होता है। थोड़ा बड़े होने पर वर्किंग युवा, जो लगातार कई घंटे कुर्सी पर बैठकर काम करते हैं उनमें पीठ दर्द का मुख्य कारण डिस्क का डिजनरेशन होता है, जिससे पीठ दर्द शुरू हो जाता है। कम उम्र के पुरुषों (15-25 वर्ष) में गठिया-बाय एंकिलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस की वजह से भी पीठ दर्द होता है। इसमें मरीज को सुबह उठने पर पूरे शरीर में खासकर पीठ में बहुत ज्यादा जकडन होती है।
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स्लिप डिस्क भी दर्द की बड़ी वजह
50 वर्ष से अधिक उम्र में स्लिप डिस्क कमर दर्द का एक बड़ा कारण होता है, जिसमें दर्द कमर से शुरू होकर पैरों तक जाता है। इसमें रीढ़ की हड्डी में छोटी-छोटी कशेरुकाएं होती हैं, जिनके बीच स्लिप डिस्क होती हैं। यह डिस्क ही शॉक अजार्वर का काम करती हैं। ये स्लिप डिस्क बाहर निकलकर पैरों की नसों पर दबाव डालने लगती हैं, तब यह दर्द पीठ से पैरों की तरफ जाता है, जिसे साइटिका भी कहा जाता है। बुजुर्गों में रीढ़
की हड्डी के अर्थराइटिस या ऑस्टियोपोरोसिस के कारण पीठ दर्द होता है। रीढ़ की हड्डी में बहुत सारी कशेरुकाएं होती हैं, जो आपस में इंटरवर्टिबल डिस्क के माध्यम से जुड़ी होती हैं।
पीठ दर्द से क्या है खतरा
कई बार दूसरी शारीरिक समस्याओं के कारण पीठ दर्द पूरी तरह डाइग्नोज नहीं हो पाता है। पीठ दर्द को हल्के में लेना और समुचित उपचार न कराने पर कई मामलों में यह लंबे समय तक बना रहता है और क्रॉनिक रूप ले लेता है। मरीज की रोजमर्रा की गतिविधियों जैसे- उठने, बैठने, चलने, लेटने आदि कामों में समस्या होने लगती हैं। ऐसी स्थिति में रीढ़ की हड्डी या डिस्क की सर्जरी तक करनी पड़ सकती है।
कब जाएं डॉक्टर के पास
पीठ दर्द को हल्के में लेना गलत है। आमतौर पर बहुत तेज दर्द हो, लेकिन दो-चार घंटे में ठीक हो जाता हो, तो यह स्थिति ज्यादा चिंताजनक नहीं होती। वहीं, जब दर्द बार-बार आए, छोटे-मोटे काम करने पर हल्का-फुल्का दर्द हो जाए और लंबे समय तक (6 सप्ताह से अधिक) रहे, तो यह क्रोनिक और चिंताजनक हो जाता है। इसके अलावा अगर मरीज को इस तरह की समस्याएं महसूस हो, तो ओवर-द-काउंटर मेडिसिन पर भरोसा न कर डॉक्टर को दिखाना चाहिए। यदि दर्द असहनीय हो जाए और 3 सप्ताह से अधिक समय तक रहे या कुछ दिन बाद दुबारा हो, पीठ दर्द और अकडन हो, जो आपकी गतिशीलता में रुकावट बने, बुखार हो, हाथ-पैरों में कमजोरी, झुनझुनाहट, दर्द या सुन्नपन जैसे न्यूरोजिकल समस्या हो, मल-त्याग या पेशाब करने में तकलीफ हो तो डॉक्टर से जरूर मिलें।
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. समस्या होने या लक्षण दिखाई देने पर हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें.)