बारिश का मौसम चल रहा है। ऐसे में कुछ स्वास्थ्य से संबधित परेशानियां भी होती हैं। जिसमें सबसे ज्यादा तकलीफ होती है चर्म रोग से, क्योंकि नमी के कारण ये तेजी से फैलता है। चर्मरोग में सबसे आम बीमारी है फंगल इन्फेक्शन, जो गर्मी और बारिश में बहुत होता है। इसे साधारण भाषा में दाद भी कहते हैं। दाद एक प्रकार का चर्मरोग होता है, जो किसी भी प्रकार की क्रीम या दवा लगाने या खाने के बाद भी बार बार हो जाता है, लेकिन होम्योपैथी की दवाओं से यह कुछ ही समय में हमेशा के लिए ठीक हो जाता है। यह किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकता है। यह शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है। बारिश और गर्मी के मौसम में यह ज्यादा तेजी से फैलता है।
फंगल इन्फेक्शन के कारण
वैसे तो यह टीनिया नामक वायरस के कारण माना जाता है, लेकिन होम्योपैथी के अनुसार शरीर में सोरा दोष माना जाता है। यह किसी वर्म या कीड़े के कारण नहीं होता है। शरीर के अलग अलग जगह पर होने के कारण इसके अलग-अलग नाम है, जैसे शरीर में हैं, तो टीनिया कार्पोरिस, सिर में है तो टीनिया केपेटिस, पैर में है तो टीनिया पेडिस, हाथों में है तो टीनिया मेनम आदि। यह बहुत तेजी से फैलने वाला रोग होता है। नमी या पसीने के कारण यह तेजी से फैलता है।
लक्षण
– दाद वाले स्थान पर खुजली होना
– दाद में जलन होना
– त्वचा पर लाल रंग के गोल-गोल चकत्ते होना
– चिपचिपा सा पानी बहना
– गले में हमेशा कफ आते रहना
– आंव की तकलीफ होना
– चिड़चिड़ापन होना

फंगल इन्फेक्शन में कुछ सहयोगी होम्योपेथिक दवाएं
होम्योपैथिक चिकित्सक और भारत सरकार सीसीआरएच, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार मंडल के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार होम्योपेथिक दवाओं से दाद हमेशा के लिए ठीक हो जाता है। होम्योपैथी में रोगी के शारीरिक और मानसिक लक्षण के अनुसार दवा दे कर रोग को ठीक किया जाता है।
मेजेरियम: यह त्वचा पर बहुत तेजी से काम करती है । पैर और जाघों में अत्याधिक खुजली होना। दाद से एक विशेष प्रकार की गंध वाला पानी निकलना। त्वचा, पपड़ी के रूप में निकलती है। यह दाद का पानी सुखा कर चर्म को रोगमुक्त करती है।
बेसिलिनम: फेफड़ों की पुरानी तकलीफ, रिंगवर्म, एक्जिमा, सांस संबधित तकलीफ, गले की ग्लैंड्स बढ़ी हुई रहती हैं। चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन रहे। (इस दवा को बार-बार रिपीट न करें)
पेट्रोलियम: त्वचा बहुत ज्यादा रुखी होती है। रात में ज्यादा खुजली होती हैं। त्वचा इतनी खुरदुरी होती है, कि जरा में ही खून निकल आता है। अक्सर चर्म रोग ठण्ड में बढ़ता है। बारीक-बारीक पानी भरे छाले हो जाते हैं। खुजली के साथ जलन होती है। उगंलियो के सिरे फटे हुए रहते हैं।
ग्रेफाइटिस: दाद या किसी भी प्रकार के चर्मरोग से पानी बहता रहे जो शहद के समान चिपचिपा हो। छोटी से छोटी चोट भी पक जाती हैं। त्वचा में दरारें पड़ जाती हैं। उंगलियों के नाखून काले हो जाते हैं, और फट जाते हैं। चर्मरोग के साथ-साथ गले में कफ की तकलीफ हो। कब्ज की शिकायत रहे। त्वचा में रात को तकलीफ ज्यादा हो, लेकिन ढक कर रखने से कम हो जाती हैं। सिर में खुजली हो।
क्रोटन-टिग: बहुत ज्यादा खुजली हो खास कर जननागों में। खुजली के बाद दर्द हो। पानी भरे छाले हो, हेर्पिस-जोस्टर, पस भरे दाने, कुछ भी खाते पीते ही दस्त लग जाएं।
रस-टोक्स: त्वचा पर पानी भरे छाले हो जाते हैं। त्वचा लाल रंग की होती है। अत्यधिक जलन होती है। त्वचा सूख कर झड़ती है। बहुत ज्यादा खुजली होती है। अत्यधिक बेचैनी रहती है। त्वचा रोगों के साथ-साथ जोड़ो का दर्द होता है। बहुत ज्यादा नींद आती है।
नोट: होम्योपैथी में रोग के कारण को दूर करके रोगी को ठीक किया जाता है। प्रत्येक रोगी की दवा उसकी शारीरिक और मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती हैं। अत: बिना चिकित्सकीय परामर्श यहां दी हुई किसी भी दवा का उपयोग न करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *