हमारे शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि लिवर एक ऐसी रासायनिक प्रयोगशाला है, जिसका कार्य पित्त तैयार करना है। यह वसा को पचाने के साथ आंतों के हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करता है। यदि किसी कारण से लिवर में दोष उत्पन्न हो जाता है तो शरीर की पूरी प्रणाली अस्त-व्यस्त हो जाती है। लिवर को स्वस्थ रखने के लिए होम्योपैथिक चिकित्सक और भारत सरकार सीसीआरएच, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार मंडल के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार योग के नियमित अभ्यास से लिवर को सशक्त रखा जा सकता है। इसके लिए भिन्न यौगिक क्रियाएं लाभकारी हैं-

आसन

लिवर के दोषों को दूर करने के लिए सूक्ष्म व्यायाम का नियमित अभ्यास बहुत लाभकारी होता है। इसके अतिरिक्त पवनमुक्तासन, वज्रासन, मर्करासन आदि का अभ्यास करना चाहिए। रोग की प्रारंभिक स्थिति में कठिन आसनों को छोडक़र बाकी सभी आसन किये जा सकते हैं। पवनमुक्त आसन के अभ्यास की विधि इस प्रकार है-

पीठ के बल जमीन पर लेट जाइए। दांयें पैर को घुटने से मोडक़र इसके घुटने को हाथों से पकडक़र घुटने को सीने के पास लाइए। इसके बाद सिर को जमीन से ऊपर उठाइए। उस स्थिति में आरामदायक समय तक रुककर वापस पूर्व स्थिति में आइए। इसके बाद यही क्रिया बांयें पैर और फिर दोनों पैरों से एक साथ कीजिए। यह पवनमुक्तासन का एक चक्र है। प्रार्भ एक या दो चक्रों से करें, धीरे-धीरे इसकी संख्या बढ़ाकर 10 से 15 तक कीजिए।

सीमाएं

  • कफ की समस्या से ग्रस्त लोग इसका अभ्यास न कर नाड़ी शोधन का अभ्यास करें।

ध्यान

  • लिवर की समस्या से ग्रस्त लोगों को ध्यान का प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए।

आहार

  • हल्का सुपाच्य भोजन लेना चाहिए। जौ के आटे की रोटी, जौ का सत्तू, मूंग की दाल, नारियल पानी का सेवन करना चाहिए। पपीता, तरबूज, सेब, अनार खाना चाहिए। शुद्ध गन्ने का रस बहुत लाभकारी है। अनार, आंवले व मूली का रस 2-2 चम्मच मिलाकर 2-3 बार नियमित पीने से लिवर की सूजन में बहुत लाभ होता है।

अन्य उपाय

  • दर्द के स्थान पर गर्म पानी की थैली से सेंक करें। दिन में आराम करने की आदत डालें।

प्राणायाम

लिवर बढ़ने की समस्या से ग्रस्त लोगों को शीतकारी या शीतली प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। शीतली प्राणायाम के अभ्यास की विधि इस प्रकार है- पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइए। दोनों हाथों को घुटनों पर सहजता से रखें। आंखों को ढीली बन्द कर चेहरे को शान्त कर लें। अब जीभ को बाहर निकालकर दोनों किनारों से मोड़ लें। इसके बाद मुंह से गहरी तथा धीमी सांस बाहर निकालें। इसकी प्रार्भ में 12 आवृतियों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे संख्या बढ़ाकर 24 से 30 कर लीजिए।

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