सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस गर्दन की रीढ़ की हड्डी की अकर्षक बीमारी है और गर्दन मे दर्द होने का यह एक मुख्य कारण माना जाता है। महिलाओं की तुलना मे यह बीमारी पुरुषों मे ज्यादा पाई जाती है । बढ़ती उम्र के साथ साथ इस बीमारी के उभरने की संभावना भी बढ़ती जाती है। 70 वर्ष की आयु के लगभग 10 प्रतिशत पुरुषों में और करीब-करीब 9 प्रतिशत महिलाओं मे यह बीमारी पाई जाती है। होम्योपैथी से इस बीमारी की प्रगति को भी नियंत्रण मे रखा जा सकता है।
सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस गर्दन की रीढक़ी हड्डी की अपकर्षक बीमारी है । बढ़ती आयु से रीढ़ की हड्डी उसके जोड़ और जोड़ो के बीच उपस्थित गद्दी में बदलावो के कारण इस बीमारी के लक्षण उभरते हैं। बगैर किसी चोट के बाजुओं में कमजोरी महसूस होना और गर्दन मे निरंतर रहने वाली ऐठन का मुख्य कारण सर्वाइकल स्पॉन्डिलासिस है । यह देखा गया है कि 40 वर्ष से ज्यादा आयु वाले व्यक्तियो मे रीढ की हड्डी के बीच की गद्दी निर्जालित हो जाती है इससे वे ज्यादा संपीडय बन जाते है और उनका लचीलापन भी कम हो जाता है और उनमे धातु जमा होने लगते हैं। 40 वर्ष से ज्यादा आयु के लोगो मे यह सभी महत्वपूर्ण बदलाव एक्सरे मे दिखाई पड़ते हैं पर इनमें से बहुत कम लोगों मे रोग के लक्षण उभरते हैं। ध्यान देनेवाली बात यह भी है कि कई बार यह बदलाव 30 वर्ष की आयु मे भी दिखाई देते हैं पर इन चिन्हों की वजह से उपचार शुरू करना जरुरी नही है यदि रोग के लक्षण उभरे ना हो।
रोग के लक्षण
- गर्दन और कधों मे बार बार दर्द होना यह दर्द चिरकालिक या प्रासंगिक हो सकता है। बीच-बीच मे यह दर्द अपने आप से कम भी हो जाता है।
- गर्दन में दर्द के साथ साथ मासपेशियों में अकडऩ आ जाती है । कई बार यह दर्द तेजी से कंधो और सिर की और फैलता है। कई मरीजों में वह दर्द पीठ मे और कंधो से होकर हाथो और उंगलियो तक भी फैल जाता है ।
- सिर के पिछले हिस्से मे दर्द होता है । वह दर्द कभी गर्दन के निचले हिस्से तक या शीर्ष तक फैलता है ।
- बगैर किसी चोट के गर्दन, कन्धे में सनसनी होना यह कुछ अन्य लक्षण है ।
- कभी-कभी असामान्य लक्षण उभरते हैं जैसे कि छाती मे दर्द होना और मरीज इस दर्द को कभी कभी गलती मे हृदय का दर्द मान लेता है।
रोग के कारण
सर्वाइकल स्पान्डिलाटिस रीढ़ की हड्डी, हड्डियों के बीच के जोड़ और गद्दी मे घिसाव आने से होता है। ज्यादातर यह बदलाव 40 वर्ष से ज्यादा उम्रवाले व्यक्तियों में पाए जाते हैं । निम्नलिखित कारणों से सर्वाइकल स्पान्डिलाइटस होने की संभावना बढ़ सकती है
- व्यवसाय संबंधित कारण- सिर पर बार बार भारी वजन उठाना, नृत्य करना, कसरत करना।
- कई परिवारों मे सर्वाइकल स्पान्डिलाइटस होने कि प्रवृति होती है। आनुवंशिक कारण की उपेक्षा नहीं की जा सकती ।
- धूम्रपान से भी खतरा होता है ।
- लगातर सिर झुकाकर या गर्दन झुकाकर काम करना।
- एक ही स्थान पर बैठकर लगातार काम करना उदाहरण कम्प्युटर के स्क्रीन/पर्दे को लगातर देखना।
- लंबी दूरी का प्रवास करना, बैठे बैठे सो जाना।
- टेलीफोन को कन्धे के सहारे रखकर लंबे समय तक बात करना ।
- लगातार गर्दन को एक ही स्थिति/अवस्था में रखना उदाहरण: टीवी देखते समय, वाहन चलाते समय इत्यादि।
सर्वाइकल का होम्योपैथिक इलाज
होम्योपैथिक चिकित्सक व केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद्, आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथिक उपचार करने से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस के मरीज को बहुत आराम मिल सकता है। बीमारी के शुरूआत में ही उपचार कराने पर परिणाम ज्यादा संतोषजनक होते हैं। चिरकालिक मरीजों में भी जम नस पर दबाव के कारण लक्षण उभरते हैं तो इनसे यह आराम दिलाने में मददगार होता है एवं बिमारी को और भी आगे बढऩे से रोकता है। जिन मरीजों में बिमारी ज्यादा संगीन हो गई हो और रीढ़ की हड्डी में बदलाव आ गए हों, उन मरीजों के दर्द में होम्योपैथिक उपचार से कम किया जा सकता है।
जिन मरीजों में रीढ़ की हड्डी में ज्यादा संरचनात्मक परिवर्तन न हुए हों उनमें होम्योपैथिक उपचार ज्यादा सफल रहता है। होम्योपैथिक उपचार पूर्ण रूप से सुरक्षित है और इस उपचार से कोई भी दुष्परिणाम नहीं होते हैं। यह जानना और समझना जरूरी है कि सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस एक उम्र के साथ बढ़ते जाने वाली बीमारी है। इस बीमारी के कारण रीढ़ की हड्डी में होने वाले बदलावों को फिर से उनके मूल रूप में नहीं लाया जा सकता है। पर इन बदलावों के कारण होने वाले। लक्षणों पर जरूर नियंत्रण पाया जा सकता है और इन बदलावों को और भी आगे बढऩे से रोकने का प्रयास होम्योपैथिक उपचार से किया जा सकता है। होम्योपैथिक उपचार और सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस: होम्योपैथी एक वैज्ञानिक चिकित्सा समधित उपचार प्रणाली है। होम्योपैथिक के मूल सिद्धांतों के अनुसार सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस का उपचार करते समय इसको पूर्ण रूप से समझा जाता है। यह करने के लिए बिमारी के लक्षणों को बारीकी से जाँचा और समझा जाता है और साथ साथ मरीज़ को समझने में भी इतना ही महत्व दिया जाता है।
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