विश्व स्वास्थ्य संगठन की अगुवाई में हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 2023 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मिलकर आत्महत्या रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ द्वारा की गई थी। वहीं, इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों में आत्महत्या न करने के प्रति जागरूकता पैदा करना है, लेकिन लाख प्रयासों के बाद भी आत्महत्या के आंकड़ों में कमी नहीं आ रही है. खास कर युवा अवस्था में लगातार हो रही खुदकुशी की घटना चिंता जनक हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं देश में सुसाइड के आंकड़ों में लगातर वृद्धि हो रही है। हाल ही में आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छात्र आत्महत्या की वार्षिक दर तेजी से बढ़ी है। एनसीआरबी 2024 के आंकड़ों के आधार पर, कुल आत्महत्याओं की संख्या में जहां सालाना 2% की वृद्धि हुई है, वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी की दर 4% से अधिक है। ये निश्चित ही चिंताकारक विषय है।

होम्योपैथिक चिकित्सक और भारत सरकार सीसीआरएच, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार मंडल के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार प्रत्येक आत्महत्या एक व्यक्तिगत त्रासदी है जो समय से पहले किसी व्यक्ति की जान ले लेती है और इसका निरंतर प्रभाव पड़ता है, जो परिवार, मित्रों और समाज के जीवन को प्रभावित करता है। हाल के वर्षों में किशोर लड़कियों और युवा महिलाओं में आत्महत्या की दर लगभग दोगुनी हो गई है। वहीं आत्महत्या के विचार आना गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का संकेतक है। इससे यह भी पता चलता है कि व्यक्ति लंबे समय से तनाव-अवसाद में जी रहा है, जिसका अगर समय रहते निदान और उपचार हो गया होता तो स्थिति को इस स्तर पर खराब होने से रोका जा सकता है।

रोकथाम के लिए परिवार और समाज की भूमिका अहम

डॉ. द्विवेदी के अनुसार आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए सभी लोगों को एक-दूसरे को समझने की जरूरत है। मानसिक तनाव, अवसाद सहित अन्य मानसिक समस्याओं से ग्रस्ति व्यक्ति को समय पर मदद मिले, इसका पूरा ध्यान परिवार और दोस्तों को रखना चाहिए। आत्महत्या के विचारों से जूझ रहे व्यक्ति को यह अहसास दिलाने की जरूरत है कि वह अकेला नहीं है। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने के प्रति जागरूकता फैलाने की भी जरूरत है।

आत्महत्या रोकने के लिए माता-पिता कर सकते हैं ये मदद

डॉ. द्विवेदी के अनुसार आत्महत्या रोकने के लिए माता-पिता काफी हद तक मदद कर सकते हैं। यदि अभिभावकों को लगता है कि उनके बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य खतरे में हैं तो उसे सुनना चाहिए। बच्चा बात नहीं कर रहा है तब भी उसे सुनें। महूसस करें कि आपका बच्चा आत्महत्या के जोखिम का तो सामना नहीं कर रहा है। आप जो देख रहे हैं उसे किशोरावस्था का नाटक समझकर नजर अंदाज न करें। बच्चों को सहानुभूति और समझ के साथ प्रतिक्रिया दें। उन्हें समाज, परिवार और दोस्तों से मिलने के लिए प्रोत्साहित करते रहे।  

अकेलेपन से रहें दूर, व्यवहार को करें नोटिस

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वैभव चतुर्वेदी के अनुसार विश्व भर में आत्महत्या के केस लगातार बढ़ रहे हैं। खास तौर से युवा पीढ़ी के अंदर नकारात्मकता इतनी बढ़ गई है कि वो सुसाइड जैसे कदम उठाते हैं। आत्महत्या का एक बड़ा कारण माता-पिता की ओर से प्रेशर भी। परिवार के करियर को लेकर बच्चों पर दबाव होता है, उससे भी बच्चे जल्द ही निराश हो जाते हैं। ऐसे में अभिभावकों को सजग होना होगा। उन्हें अपने बच्चे के व्यवहार को नोटिस करना चाहिए। खास तौर पर जब बच्चा जब कम बोलने लग जाए, उदास रहने लग जाए या वह अकेला रहता है, तो उस पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत होती है। अगर बच्चा कम सो रहा है, कम खाना खा रहा है तो भी बच्चों पर ध्यान देना होगा। क्योंकि नींद नहीं आना, तनाव और डिप्रेशन यह तीनं कारण आत्महत्या के मुख्य कारक हो सकते हैं। दुनिया में कोई भी खुद मरना नहीं चाहता है लेकिन जब उन्हें किसी का स्पोर्ट नहीं मिलता है तो व इस तरह के कदम उठाते हैं।

एनसीआरबी के आंकड़े

एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट को देखें तो पिछले पांच सालों में देशभर में आत्महत्या के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2018 में आत्महत्या के 1 लाख 34 हजार 516 मामले दर्ज किए गए, जबकि साल 2019 में ये सांख्य बढ़ कर 1 लाख 39 हजार 123 पर पहुंच गई। और 2020 में ये आंकड़ा 1 लाख 53 हजार 52 पहुंच गया तो साल 2021 में आंकड़ा 1 लाख 64 हजार 33 पर पहुंचा और साल 2022 में 1 लाख 70 हजार 924 तक पहुंच गया। वहीं कुछ चौंकाने वाले तथ्य भी है। रिपोर्ट के अनुसार 60 साल से अधिक उम्र के पुरुष व महिलाएं आत्महत्या कर रही है। 2022 की रिपोर्ट के अनुसर 11 हजार 712 पुरुष तो 3 हजार 627 महिलाओं ने सुसाइड किया है। इसी तरह से सबसे ज्यादा आत्महत्या के आंकड़ों को देखें तो 2022 में 30 से 45 वर्ष की आयु वाले पुरुष और महिला दोनों ने सुसाइड किया है।  इतना ही नहीं 18 वर्ष से कम उम्र के सुसाइड के आंकड़ों में लड़कियों की संख्या ज्यादा है। साल 2022 में 18 साल से कम उम्र के सुसाइड के आंकड़ों के अनुसार 5 हजार 588 लड़कियों ने तो 4 हजार 616 लड़कों ने सुसाइड किया।

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