– मानसिक स्वास्थ्य – बच्चों और किशोरों के लिए शीर्ष स्वास्थ्य चिंता का विषय

– मोटापा, पढ़ाई जैसी प्रमुख चिंताओं में टॉप-10 पर है बच्चों में स्क्रीन टाइम समस्या

– कोरोनाकाल में बढ़ा मोबाइल का इस्तेमाल आज एक आदत बन गया जो सबसे बड़ी समस्या

मोबाइल, लैपटाप, टीवी और अन्य गैजेट आज हमारी दिनचर्या का बेहद अहम हिस्सा बन गया है। इनसे काफी हद तक हमें सहूलियत हो रही है, लेकिन कहीं न कहीं दुष्प्रभाव भी देखे जा रहे हैं। छोटे बच्चों से लेकर युवाओं का सभी में मोबाइल और आनलाइन गेम आदि को लेकर बढ़ती दिलचस्पी उनके मानसिक विकास को प्रभावित कर रही है।

एक वक्त था जब माता-पिता बच्चों में बढ़ते मोटापे को लेकर फिक्रमंद रहते थे। लेकिन आज माता-पिता की चिंता में पहले नंबर पर बच्चों के सोशल मीडिया के अत्याधिक उपयोग करने और स्क्रीन टाइम को ला दिया है। क्योंकि आजकल पढ़ाई के साथ बच्चों का ज्यादा समय मोबाइल पर वीडियो और रिल्स देखने में बीत रहा है। इस समस्या को लेकर मनोचिकित्सक भी कहते हैं कि जन्म के बाद से लगातार बढ़ते बच्चों के लिए स्क्रीन टाइन को निश्चित करना बहुत जरूरी है। लेकिन क्या आप जानते हैं बच्चों की मोबाइल की लत को छुड़ाने में होम्योपैथी,  योग एवं नेचुरोपैथी चिकित्सा काफी हद तक कारगर साबित हो सकती है। क्योंकि  इन पद्धतियों के पास ही ऐसे उपाय है जिनसे एकाग्रता बढ़ती है और व्यक्ति मानसिक रूप से स्वयं को मजबूत बना सकता है।

माता-पिता की चिंताओं में टॉप-10 में शामिल है बच्चों का स्क्रीन टाइन प्रोब्लम

अमेरिका के मिशिगन यूनिवर्सिटी के चिल्ड्रेन्स हेल्थ द्वारा किए गए एक सर्वे में सामने आया है कि माता-पिता की चिंता में पहले नंबर पर बच्चों के सोशल मीडिया के अत्याधिक उपयोग करने और स्क्रीन टाइम आ गई है। सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों को लेकर चिंताओं के टॉप-10 मुद्दों में स्क्रीन टाइम, सोशल मीडिया इस्तेमाल के साथ ही भावनात्म स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी का उपयोग शामिल है।  सर्वे में आधे से अधिक माता-पिता ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को बच्चों और किशोरों के लिए शीर्ष स्वास्थ्य चिंता का विषय माना है।

कोरोना काल में बढ़ा स्क्रीन टाइम जो अब आदत बना

केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य एवं वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. ए.के. द्विवेदी बताते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान स्कूल-कॉलेज बंद होने और ऑनलाइन पढ़ाई की वजह से बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ा है। जो अब आदत बन गया है और बच्चें अधिकाशं समय मोबाइल पर वीडियो एवं रिल्स देखने में बीताते हैं। बच्चे कम उम्र में ही डिजिटल उपकरणों और सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। माता-पिता को सुरक्षा, आत्म सम्मान, सामाजिक संबंधों और आदतों पर नकारात्मक प्रभावों को रोकने और उचित निगरानी करने में परेशानी हो सकती जो चिंता की वजह है। मां-बाप के लिए बच्चों के स्वास्थ्य संबंधित चिंताओं में टॉप-10 में पहले नंबर पर स्क्रीन टाइम है तो उसके बाद सोशल मीडिया उपयोग, मानसिक स्वास्थ्य, अवसाद, आत्महत्या, तनाव-चिंता, धमकाना, मोटापा, स्कूली हिंसा और 10वें नंबर पर है असुरक्षित पड़ोस, शराब-ड्रग्स एवं वेपिंग। माता-पिता अभी भी अस्वास्थ्यकर भोजन एवं मोटापे सहित शारीरिक स्थिति को बच्चों के स्वास्थ्य मुद्दों के रूप में देखते हैं लेकिन मानसिक स्वास्थ्य, सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम के बारे में चिंताओं ने इन्हें पीछे छोड़ दिया है।

वजन का बढ़ना ही नहीं कम होना भी हानिकारक

ऐसी है मबोइल की लत…

डॉ. ए.के. द्विवेदी बताते हैं कि बच्चे मोबाइल को आंखों के बहुत पास रखकर देखते हैं तो आंखों पर असर पड़ता है। उनकी पास और दूर दोनों की दृष्टि कमजोर पड़ती है। इसके साथ क्योंकि मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करने वाले बच्चे बाहर खेलने-कूदने नहीं जाते हैं तो उनमें मोटापा और हाईपरटेंशन जैसी बीमारियां हो सकती है। डॉ. द्विवेदी आगे बताते हैं कि मोबाइल फोन प्रयोग करने वाला बच्चा वास्तविक दुनिया से हटकर इमैजिनेशन की दुनिया में जीने लगता है। वह खेलना-कूदना कम कर देता है। बच्चे का दूसरे बच्चों और परिवार, रिश्तेदार के लोगों से संपर्क कम हो जाता है। ये कहिए कि उसकी सोशल स्किल कम हो जाती है। सिर्फ बड़े बच्चें नहीं, नर्सरी और केजी में पढ़ने वाले हजारों बच्चे भी मोबाइल का शिकार हो रहे हैं। घुटने-घुटने चलने वाले बच्चों को भी आज खाते समय मोबाइल चाहिए होता है, कई बार वो वीडियो देखने के चक्कर में खाना तक भूल जाता है। वहीं भारत समेत पूरी दुनिया में जो शोध हुए हैं उसके मुताबिक जिस घर में माता-पिता, बड़े भाई बहन मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करते हैं तो वहां बच्चे भी ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। कई रिसर्च में यह भी पाया गया है कि मोबाइल इंटरनेट का प्रयोग कोकीन की तरह है। जिसे नहीं मिलता वो परेशान हो जाता है।

स्क्रीन टाइम की लत के कारण और भी नुकसान

डॉ. द्विवेदी के अनुसार मोबाइल फोन की लत और स्क्रीन टाइम के कई नुकासन है। खाली समय में मनोरंजन के लिए मोबाइल का कुछ समय के लिए सहारा लेना ठीक है लेकिन गाहे-बगाहे उंगलियां चलाते रहना, लत की हद तक इसमें डूबना मुश्किलें पैदा करता ही है। अनावश्यक रूप से यहां-वहां सर्फिंग करने से कभी वित्तीय झांसों में भी फंस जाते हैं। धोखाधड़ी के मामलों में अब मोबाइल कई रूप में इस्तेमाल होने लगा है। वजन का बढ़ना ही नहीं कम होना भी हानिकारक फबिंग भी आम है यानी जब बहुत सारे लोग साथ हैं, उनसे बात करने के बजाय फोन पर ड़े रहना सामाजिक रिश्तों पर आघात है। बाहरी आवाजों से दूर रहने के ले ईयर फोंस का उपयोग आम है लेकिन यह आपके सुनने की क्षमता पर असर डाल रहा है। गेमिंग की लत क्योंकि इसकी जद में आकर बच्चे कई अपराधिक कदम उठाते हैं। साथ ही उनमें कुछ हटकर और एडवेंचर करने की प्रवृत्ति अधिक होती जा रही है। इससे कभी-कभी वे खुद को नुकसान पहुंचाते हैं तो कभी आवेश में आकर दूसरों के लिए परेशानी का सबब बनते हैं।

स्क्रीन टाइम को बच्चों की आयु के लिहाज से करें निश्चित

डॉ. एके द्विवेदी कहते हैं कि बच्चों के स्क्रीन टाइम को उनकी आयु के लिहाज से निश्चित करना चाहिए। इसके लिए कुछ कदम उठाने आवश्यक हैं- जैसे  जन्म से दो वर्षों तक बच्चों को मोबाइल फोन या स्क्रीन के संपर्क में न आने दें। तीन से पांच वर्ष तक स्क्रीन टाइम आधा घंटा हो। छह से 12 वर्ष तक के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम एक से दो घंटा हो। 12 से अधिक आयु वर्ग से स्कूल जाने तक की अवस्था तक बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम तीन से चार घंटे तक हो। बच्चों को बाहर के खेलकूद के लिए प्रेरित करें। उन्हें हमउम्र बच्चों से घुलने मिलने दें। बच्चों के लिए समय निकालें। उन्हें पारिवारिक समय दें। उन्हें घर के कामों में शामिल करें। घर के पास बने कालोनी के पार्क में रोजाना लेकर जाएं। बच्चों को किताबें पढ़ने, स्वीमिंग, पौधा लगाने, आर्ट, पेंटिंग करने के लिए प्रेरित करें। बच्चों को संगीत से जोड़ें। संगीत मानसिक अवस्था को बेहतर करने में मदद करता है। डॉ. द्विवेदी कहते हैं इसके अलावा होम्योपैथिक चिकित्सा में भी अनेकों दवाएं उपलब्ध है जिनकी सहायता से इस समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है।  योग एवं नेचुरोपैथी चिकित्सा अपना कर जिसमें योग थैरेपी, सिरोधारा, प्राणायाम जैसे उपचार शामिल है जिनसे दिमाग की स्थिरता लाई जा सकती है।

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