बचपन में डायबिटीज होना अब एक चौंकाने वाली बात नहीं रही। स्कूल जाने की उम्र वाले 10 बच्चों में से एक डायबिटीज की कगार पर है। 5 से 9 वर्ष के बच्चों और 10 से 19 वर्ष के किशोंरों पर किए गए व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (सीएनएनएस) 2016-18 के हाल ही में जारी हुए नतीजों में भी यह बात सामने आई है। यह भी पता चला है कि इन बच्चों में से 1 फीसदी बच्चे डायबिटीज के मरीज हैं। होम्योपैथिक चिकित्सक और भारत सरकार सीसीआरएच, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार मंडल के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी दुनिया की डायबिटिक केपिटल बनते जा रहे भारत में ही कुछ आनुवांशिक कारणों और कई मर्तबा जीवनशैली, खान-पान के कारण बच्चे टाइप-1 और टाइप-2 दोनों ही किस्म के डायबिटीज के शिकार हो जाते हैं। दक्षिण एशियाई देशों में बच्चों में डायबिटीज के मामले में भारत में ही स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। इस बाबत पूरा ध्यान दिए जाने की इसलिए भी जरूरत है कि मधुमेह बच्चों की आंखों और किडनियों पर बुरा असर डाल सकता है।
टाइप-2 डायबिटीज का पूरा इलाज तो संभव नहीं है, लेकिन इसे दवा और जीवनशैली में बदलाव के साथ नियंत्रण में रखा जा सकता है। टाइप-1 डायबिटीज की बात करते हुए वह बताते हैं कि इसका कारण अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है, लेकिन अब तक की जानकारी के मुताबिक यह आनुवांशिक दोष है।
कसे ज्यादा है खतरा
- अधिक वजन वाले बच्चों को
- परिवार में आनुवांशिक बीमारी होने पर
- इन्सुलिन प्रतिरोधी होने पर
क्या होते हैं बच्चों में मधुमेह के लक्षण
जब बच्चों में शुगर लेवल असामान्य रूप से बढ़ जाता है, तो उन्हें बहुत ज्यादा ह्रश्वयास लगती है। वो पानी पीने के अलावा, जूस और ड्रिंक जैसी लिक्विड चीजों का भी ज्यादा सेवन करना चाहते हैं। डायबिटीज का ये सबसे सामान्य लक्षण है, जो बड़े लोगों में भी पाया जाता है। जब बच्चे की ह्रश्वयास बढ़ेगी और वो ज्यादा लिक्विड लेगा तो जाहिर है, उसे बार-बार पेशाब जाना पड़ेगा।
- बच्चे को अगर डायबिटीज की समस्या हो जाए, तो असर उनकी भूख बढ़ जाती है, लेकिन वह कितना भी खा ले उसका वजन ज्यादा होने की बजाय कम होने लगता है।
- डायबिटीज से पीडि़त बच्चे इन्सुलिन की कमी के कारण थके और दूसरे बच्चों की तुलना में सुस्त लगने लगते हैं।
- शरीर के घाव जल्दी नहीं भरना भी एक लक्षण हो सकता है।
इस बात का रखें खयाल
अगर बच्चे में इन लक्षणों की शुरुआत में ही पहचान हो जाती है, तो वह बच्चा इस समस्या से जल्द मुक्त हो सकता है। डायबिटीज में खास देखभाल और परहेज की जरूरत होती है। एक बार पैरेंट्स उसकी बीमारी को पहचान लें, उसके बाद उनके बच्चे का इलाज संभव हो जाएगा।
पेरेंट्स की भूमिका अहम
बच्चों के डायबिटीज से जंग में पेरेंट्स की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्हें बच्चों में स्वस्थ जीवनशैली विकसित करना चाहिए और पौष्टिक आहार को लेकर उनकी रुचि में इजाफे की कोशिश करना चाहिए। रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट, शुगर, मिठाई, मैदे वाली सफेद रोटी, पेस्ट्री, सोडा और जंक फूड से बच्चों को दूर रखें। बच्चे को नियमित एसरसाइज की आदत डालें। उन्हें इन्डोर की बजाय आउटडोर गेम खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। डायबिटिक बच्चे की सेहत का निश्चित तौर पर पूरा खयाल रखें, लेकिन उसे भी वास्तविकता से अवगत कराएं। उसे यह बात समझाएं कि डायबिटीज पर नियंत्रण उसे जिंदगी और अधिक खुलकर जीने में मदद करेगा। बच्चे को घर में भी अलग व्यवहार न दें। उसे सामान्य जिंदगी जीने का हक है।