र्थराइटिस शब्द सुनते ही हमारे मन में घुटने या कूल्हे के जोड़ों का ध्यान आता है, लेकिन अर्थराइटिस का प्रकोप मानव शरीर के किसी भी जोड़ पर हो सकता है। घुटने और कूल्हे के अलावा स्पाइनल अर्थराइटिस (रीढ़ की गठिया) एक अत्यंत कष्टकारी बीमारी है, जो आजकल बहुत तेजी से बढ़ रही है। केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड और डीएवीवी इंदौर में कार्य परिषद के सदस्य वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी  का कहना है कि हैरानी की बात यह है कि सिर्फ बड़े बुजुर्ग बल्कि युवा भी इस गंभीर रोग की चपेट में आ रहे हैं। वहीं एक अध्यन के अनुसार 2010 से 2017 के बीच 18 से 44 वर्ष की आयु के लोगों में स्पाइनल अर्थराइटिस के मामलों में 10 प्रतिशत वृद्धि हुई है। हालांकि समय रहते इस बीमारी का इलाज करवाकर छुटकारा पाया जा सकता है।  

इस वृद्धि के कई संभावित कारण हैं, जिनमें शामिल हैं :

  • आज की जीवनशैली इस बीमारी का एक प्रमुख कारण है लंबे समय तक ऑफिस या घर में कंम्प्यूटर पर काम करना।
  • फोन पर काफी देर तक गर्दन एक तरफ झुकाकर बात करना।
  • लंबी दूरी तक खराब सडक़ पर दोपहिया वाहन चलाना।
  • स्टाइलिश चेयर्स और सोफे का अत्यधिक इस्तेमाल।
  • शराब और तंबाकू का अत्यधिक सेवन।
  • बढ़ता मोटापा और घटता शारीरिक परिश्रम इस बीमारी के प्रमुख कारणों में शामिल हैं।
  • अधिक वजन: अधिक वजन रीढ़ की हड्डी के जोड़ों पर दबाव डाल सकता है, जिससे सूजन और दर्द हो सकता है।
  • कम शारीरिक गतिविधि: शारीरिक गतिविधि रीढ़ की हड्डी को मजबूत और लचीला रखने में मदद करती है। कम शारीरिक गतिविधि रीढ़ की हड्डी को कमजोर बना सकती है, जिससे चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है।
  • खराब मुद्रा: खराब मुद्रा रीढ़ की हड्डी पर दबाव डाल सकती है, जिससे दर्द और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
  • आनुवंशिकी: कुछ मामलों में, स्पाइनल अर्थराइटिस आनुवंशिक हो सकता है।

स्पाइनल अर्थराइटिस के लक्षण

  • लंबे समय से कमर या गर्दन में दर्द।
  • सुबह के वक्त या लंबे आराम के बाद गर्दन और कमर में जकडऩ और असहनीय पीड़ा होना।
  • गर्दन का दर्द, जिसका प्रभाव कंधे और हाथों में झनझनाहट की तरह महसूस होता है।
  • कमर का दर्द जो पैरों में झनझनाहट व कमजोरी व सुन्नपन का अहसास कराता है।
  • मानसिक कारणों
  • खासकर तनाव से दर्द में इजाफा होना।

जानें उपचार के बारे में

  • चिकित्सीय जांच व अर्थराइटिस प्रोफाइल जांच, रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) की गहन जांच जैसे एक्स-रे, सी.टी.स्कैन, एमआरआई और आइसोटोप बोन और स्पाइन स्कैनिंग।
  • नियमित शारीरिक व्यायाम और संतुलित-पौष्टिक भोजन करें, जो इस रोग से बचाव का एक प्रमुख तरीका है।
  • विशेषज्ञ की देखरेख में सही तरीके से सोना, उठना, बैठना और भार उठाने की विधियां जानना।
  • सर्वाइकल कॉलर और लम्बोसेकरल बेल्ट के इस्तेमाल से दर्द में राहत मिलती है।
  • एपिड्युरल इंजेक्शन और फेसीटल इंजेक्शन के प्रयोग से दर्द में राहत मिलती है। डॉक्टर से परामर्श के बाद ही इसका इस्तेमाल करें।
  • अत्याधुनिक इंडोस्कोपिक न्यूरल डिकंप्रेशन, डिस्क न्यूक्लियोटॅमी और गंभीर मामलों में स्पाइनल फ्यूजन, डिस्क रिप्लेसमेंट और करेक्टिव ऑस्टियोटॅमी द्वारा स्पाइनल अर्थराइटिस के लगभग 98 फीसदी मामलों में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

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